खैरागढ़। मौसम सुहाना हो या मुश्किल, आसमान की ऊंचाइयों को चीरते हुए हजारों किलोमीटर की उड़ान भर कर छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ में एक खास मेहमान ने दस्तक दी है। जी हां, हम बात कर रहे हैं व्हिंब्रेल (Whimbrel) की — एक ऐसा प्रवासी पक्षी जो दुनिया भर के पक्षी प्रेमियों के लिए आश्चर्य और शोध का विषय बना हुआ है।
इस बार व्हिंब्रेल को न सिर्फ देखा गया बल्कि उसे कैमरे में भी क़ैद किया गया है, वो भी तब जब उसके पंखों में बंधा है एक हाईटेक ट्रैकिंग सिस्टम — जीएसएम और जीपीएस टैग। यह तकनीक शोधकर्ताओं को इस बात की जानकारी देती है कि यह पक्षी किन रास्तों से होते हुए किस समय किस जगह पहुंच रहा है।
उत्तर गोलार्ध से हजारों किलोमीटर की दूरी तय करके जब यह पक्षी छत्तीसगढ़ की धरती पर उतरा, तो स्थानीय पक्षी विशेषज्ञों और प्रकृति प्रेमियों में खुशी की लहर दौड़ गई। उनके लिए यह पल सिर्फ एक दृश्य नहीं, बल्कि प्रकृति के अद्भुत चक्र का साक्षी बनने जैसा था।
व्हिंब्रेल को उसकी घुमावदार चोंच, धारीदार सिर और लंबी टांगों से पहचाना जाता है। समुद्र के किनारों और जलाशयों में रहने वाला यह पक्षी कीड़े-मकोड़ों, केकड़ों और अन्य जलजीवों को अपना भोजन बनाता है। एक उत्कृष्ट शिकारी होने के साथ-साथ, इसकी दिशा पहचानने की क्षमता भी अद्वितीय है। यही वजह है कि यह हजारों किलोमीटर की यात्रा बिना किसी मानचित्र के बड़ी सहजता से पूरी कर लेता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, व्हिंब्रेल को ट्रैक करने के लिए जो जीपीएस टैग उपयोग में लाया गया है, उसकी कीमत 10 लाख रुपये या उससे अधिक हो सकती है। इतने महंगे टैग का उपयोग इस पक्षी की गतिविधियों को समझने और उसके प्रवास के रास्तों का अध्ययन करने के लिए किया जाता है। इससे न केवल पक्षियों की आदतों के बारे में नई जानकारियाँ मिलती हैं, बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने में भी सहायता मिलती है।
स्थानीय भाषा में इसे “छोटा गोंग़” कहा जाता है, और अब यह पक्षी यहां आने वाले सीज़न में लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गया है। प्रकृति प्रेमियों की उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में इस तरह के और भी प्रवासी पक्षी यहां आएंगे और क्षेत्र की जैव विविधता को नई पहचान देंगे।